Friday, February 27, 2009

hindi message - Response to AB's Day 310

आदरणीय भाईसाहब,
सादर चरण स्पर्श,

अत्र कुशलं तत्रस्तु । कई दिनॊं से मैं इस प्रयास में था कि आप को व अन्य सभी को हिंदी में संबोधित कर सकूं, समय या हालात ने ऎसा नही होने दिया । यहां सबसे पहले इस बात या विषय का उल्लेख अवश्य ही होना चाहिये कि आपके पत्र में जिस प्रकार आपने एक भारतीय परिवार का वर्णन किया है, जिस प्रकार आपने अपने माता-पिता के प्रति अपना अपार स्नेह व्यक्त किया है तथा जितना संभव है उतना अपने परिवार को समय देने की अपनी आशा की ओर संकेत दिया है, यह सब अत्यंत ही सराहनीय हैं ।

कल का मैच बेहद रोमांचक था, खेल में एक टीम की हार तो लगभग तय होती है वह टीम एक बार फिर भारत की थी इस बात का खेद हो सकता है खेल के प्रति दुर्भावना कभी भी नही हो सकती । अगर देखा जाये तब गप्टिल हरभजन की गेंद पर आउट नही थे फिर भी अंपायर से गल्ती हो गई थी, इस भूल को शायद ऊपर वाले ने नजरंदाज नही किया, जो मैच लग्भग भारत की झोली में आ गिरने को था अंतिम गेंद पर न्यूज़ीलैंड के खाते में पहुंच गया । वास्तव में बहुत ही उम्दा प्रदर्शन दोनॊ ही टीमॊ की तरफ़ से रहा इसमें कोई शक नही । आगे भी इसी तरह के खेल प्रदर्शन की आशा रखना बेमानी नही लगता छोट-मोटे प्रदर्शन भीड द्वारा आजकल हर मैदान पर होते है, अधिक रोष इस बात का नही होना चाहिये । खेल-भावना हार जीत से बढकर है, धोनी या हरभजन से मेरा यही अनुरोध जै कि अगली बार अगर किसी गप्टिल को आउट करार दिया जाये तो निश्चित ही उन्हे उसे वापस बुला कर खेलते रहने देना चाहिये । यहां मुझे इंग्लैंड के विरुद्ध कप्तान विश्वनाथ का या कई अवसर पर एडम गिल्क्रिस्ट का व्यवहार विशेष सरहनीय लगता है कपिल ने भी कुछ एक अवसर पर आगे निकलते हुये पाकिस्तानी को (नाम याद नही आ रहा) चेतावनी देने के बाद ही रन आउट किया था । हमें यह नही भूलना चाहिये कि हम खेल अपने अंदर खेल-भावना के विकास के लिय खेलते है मात्र जीत हार या परिणाम के लिये खेलेंगें तो निरा उद्देश्य जो खेलॊं में निहित है वही नष्ट हो जायेगा, टीम-भावना या अपने देश के लिये खेल पाना दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे मै हार-जीत से उपर रखता हूं । हां हमारा प्रयास जीतने के लिये भी अवश्य होना ही चाहिये अन्यथा मनोरंजन मेम कमि आ सकती है ।

चलिये आज की वार्ता यहीं समाप्त करता हू, कल आप से फिर मिलने का वादा करते हुए यह पत्र यहीं समाप्त करता हूं, अभिषेक प्रभृति को सस्नेह प्यार एवं जया जी को मेरा सादर प्रणाम स्वीकार हॊ। अमृत तथा सविता की ओर से भी आप सबकॊ यथायोग्य अभिवादन ।

अभय शर्मा, भारत, 28 फरवरी 2009 8.38 प्रातः

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