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आदरणीय भाईसाहब
सादर प्रणाम
अभी कुछ ही देर पहले ऎसे ही कुछ लिख रहा था, सोचा सोने से पहले आप लोगों के साथ भी इसे शॆयर करता चलूं, भाषा कोशिश करके सीधी-सादी ही रखना पसंद करता हूं, आज के इस युग में लोग यही पढ लें वही काफी है, नही तो भाषा की जटिलता का बहाना करके इस एहसास को अछूत कन्या का जामा पहना कर तिरस्कृत करनें में किसी का क्या जाता है ?
एह्सास
उदासी है कैसी जो छाई हुई है
यहां रूह हर एक सताई हुई है
नही जलते दीपक यहा दिल है जलते
ये बुझते हुए मन नही अब संवरते
ये किस्से किसे कोई जाकर सुनाये
किसे आज फिए ये कहानी बतायें
क्या मरने के दुनिया में कम थे बहाने
चले आज फिर से बम एटम बनाने
कहां खो गये है जहां के सयाने
कहां सो गये है अमन के दीवाने
कहीं कोई गांधी क्यों पैदा ना होता
यहां बुद्ध-नानक का सौदा है होता
हे इंसा के दुश्मन जरा होश में आ
ओ हैवानियत तू न अब जोश में आ
चलो मिल के दुनिया को जन्नत बना दें
फिर अपने दिलों में मुहब्बत बसा लें ।
अभय शर्मा 30 सितंबर /1 अक्टूबर 2009
यह एहसास आज अपनी छोटी बहन राज्यश्री के जन्मदिन पर भेंट करता हूँ ।
सादर प्रणाम
अभी कुछ ही देर पहले ऎसे ही कुछ लिख रहा था, सोचा सोने से पहले आप लोगों के साथ भी इसे शॆयर करता चलूं, भाषा कोशिश करके सीधी-सादी ही रखना पसंद करता हूं, आज के इस युग में लोग यही पढ लें वही काफी है, नही तो भाषा की जटिलता का बहाना करके इस एहसास को अछूत कन्या का जामा पहना कर तिरस्कृत करनें में किसी का क्या जाता है ?
एह्सास
उदासी है कैसी जो छाई हुई है
यहां रूह हर एक सताई हुई है
नही जलते दीपक यहा दिल है जलते
ये बुझते हुए मन नही अब संवरते
ये किस्से किसे कोई जाकर सुनाये
किसे आज फिए ये कहानी बतायें
क्या मरने के दुनिया में कम थे बहाने
चले आज फिर से बम एटम बनाने
कहां खो गये है जहां के सयाने
कहां सो गये है अमन के दीवाने
कहीं कोई गांधी क्यों पैदा ना होता
यहां बुद्ध-नानक का सौदा है होता
हे इंसा के दुश्मन जरा होश में आ
ओ हैवानियत तू न अब जोश में आ
चलो मिल के दुनिया को जन्नत बना दें
फिर अपने दिलों में मुहब्बत बसा लें ।
अभय शर्मा 30 सितंबर /1 अक्टूबर 2009
यह एहसास आज अपनी छोटी बहन राज्यश्री के जन्मदिन पर भेंट करता हूँ ।