हम झुग्गी में रहने वाले
हम भी आखिर इंसान है
गली का कुत्ता कहते हो
यह कैसी झूठी शान है
हम भूखे नंगे गली में रहते
तुम महलों के पलने वाले
माना तुम हो देश चलाते
हम भी यह बदन जलाते है
कैसे तुमने मान लिया सच
सह लेंगें अपमान सभी
जब जी चाहेगा कह कर तुम
कर दोगे बदनाम हमें
मेरे घर में आकर देखो
है बस्ती यह अरमानों की
यहां भी सपने देखे जाते
मिलते दिल गुल भी खिलते है
जिसे अंधेरा समझ रहे हो
वह प्रकाश उजियाला है
जिसे पूजते है हम सब
वह ही भगवान तुम्हारा है
सुख-दुख मधु-कटु के समान
जीवन के हम दो चक्के है
हम दरिद्र है तब अमीर तुम
इसके सबूत अब पक्के है
इस तन के आगे की सोचो
यह सगा तेरा ना मेरा है
मन से अपने प्रश्न पूछ लो
क्या लाये क्या ले जाना है ?
अभय भारती (य), 23 जनवरी 2009, 1523
हम भी आखिर इंसान है
गली का कुत्ता कहते हो
यह कैसी झूठी शान है
हम भूखे नंगे गली में रहते
तुम महलों के पलने वाले
माना तुम हो देश चलाते
हम भी यह बदन जलाते है
कैसे तुमने मान लिया सच
सह लेंगें अपमान सभी
जब जी चाहेगा कह कर तुम
कर दोगे बदनाम हमें
मेरे घर में आकर देखो
है बस्ती यह अरमानों की
यहां भी सपने देखे जाते
मिलते दिल गुल भी खिलते है
जिसे अंधेरा समझ रहे हो
वह प्रकाश उजियाला है
जिसे पूजते है हम सब
वह ही भगवान तुम्हारा है
सुख-दुख मधु-कटु के समान
जीवन के हम दो चक्के है
हम दरिद्र है तब अमीर तुम
इसके सबूत अब पक्के है
इस तन के आगे की सोचो
यह सगा तेरा ना मेरा है
मन से अपने प्रश्न पूछ लो
क्या लाये क्या ले जाना है ?
अभय भारती (य), 23 जनवरी 2009, 1523
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