Sunday, January 25, 2009

Poem - Brothers & Sisters of Slums in India


हम झुग्गी में रहने वाले
हम भी आखिर इंसान है
गली का कुत्ता कहते हो
यह कैसी झूठी शान है

हम भूखे नंगे गली में रहते
तुम महलों के पलने वाले
माना तुम हो देश चलाते
हम भी यह बदन जलाते है

कैसे तुमने मान लिया सच
सह लेंगें अपमान सभी
जब जी चाहेगा कह कर तुम
कर दोगे बदनाम हमें

मेरे घर में आकर देखो
है बस्ती यह अरमानों की
यहां भी सपने देखे जाते
मिलते दिल गुल भी खिलते है

जिसे अंधेरा समझ रहे हो
वह प्रकाश उजियाला है
जिसे पूजते है हम सब
वह ही भगवान तुम्हारा है

सुख-दुख मधु-कटु के समान
जीवन के हम दो चक्के है
हम दरिद्र है तब अमीर तुम
इसके सबूत अब पक्के है

इस तन के आगे की सोचो
यह सगा तेरा ना मेरा है
मन से अपने प्रश्न पूछ लो
क्या लाये क्या ले जाना है ?

अभय भारती (य), 23 जनवरी 2009, 1523


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