Sunday, January 18, 2009

Dr. Harivanshrai Bachchan - d. January 18 2003.

आदरणीय भाईसाहब,
सादर चरण स्पर्श,

अधिक चेष्टा करने पर मुझे कम ही सफलता मिलती है, कल से ही इसी भाव में डूबा रहा कि डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन की पुण्यतिथी पर कुछ विशेष सामग्री जुटा कर आपके व अन्य लोगों के लिये उप्लब्ध करा सकूं, नियति ने मेरी नियमितता पर अंकुश लगा घटना क्रम को अपने ही नियंत्रण में रखा, आज दिन भर मै इसी उहापोह में फंसा रहा कि क्या लिखना चाहिये या क्या नही? अंततः रात ने ही साथ दिया आज नीड का निर्माण फिर से कुछ एक कवितामयी कथानक ही यहां प्रस्तुत कर रहा हूं । यह कहना मेरे अधिकार के बाहर की बात होगी कि डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन की यह पंक्तियां ही मैने क्यों चुनी, मुझसे अधिक विद्वान शायद इसकी खोह में जाकर कुछ अर्थ निकालने में समर्थ हों, मैं इस माथापच्ची से बचना ही अपने हित में श्रेयस्कर समझता हूं । इतना ही कह सकता हूं कि जितना मै समझता था या सोचता था कि जानता हूं उसको व्यक्त करने में उतना ही अधिक असमर्थ हूं । डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन के बारे में जिन्हे अधिक जानकारी प्राप्त करनी हो उनके लिये मै यही कह सकता हूं कि चार खंडों में प्रस्तुत उनकी आत्मकथा से बढकर दूसरा कोई अन्य उपाय नही हो सकता – क्या भूलूं क्या याद करूं , नीड का निर्माण फिर, बसेरे से दूर तथा दशद्वार से सोपान तक ।

मैं स्वयं करता रहा हूं
जिस तरह प्रतिरोध अपना
मानवों में कौन मेरा
उस तरह से कर सकेगा ?
(नीड का निर्माण फिर पेज 38)

बुलबुल जा रही है आज !
प्राण सौरभ से भिदा है,
कंटकों से तन छिदा है,
याद भोगे सुख दुखों की आ रही है आज !
बुलबुल जा रही है आज !

प्यार मेरा फूल को भी,
प्यार मेरा शूल को भी,
फूल से मैं खुश, नही मैं शूल से नाराज !
बुलबुल जा रही है आज !

आ रहा तूफान हर-हर
अब न जाने यह उडाकर
फेंक देगा किस जगह पर !
तुम रहो खिलते महकते कलि-प्रसून-समाज !
बुलबुल जा रही है आज !
(नीड का निर्माण फिर पेज 99)

अनासक्त था मै सुख-दुख से
अधरों को कटु-मधु समान था
नयनों को तम-ज्योति एक सी,
कानों को सम रुदन-गान था;
सहस एक सितारा बोला,
यह न रहेगा बहुत दिनों तक ।
(नीड का निर्माण फिर पेज 168)

सिर पर बाल घने, घुंघराले, काले, कडे, बडे, बिखरे से,
मस्ती, आज़ादी, बे-खबरी, बेफिक्री के हैं संदेशे,
माथा उठा हुआ ऊपर को, भौहों में कुछ टेढापन है,
दुनिया को है एक चुनौती, कभी नही झुकने का प्रण है;
आंखों में छाया-प्रकाश की आंख-मिचौनी छिडी परस्पर,
बेचैनी में, बेसबरी में लुके-छिपे हैं सपने सुंदर ।
(नीड का निर्माण फिर पेज 202)

स्वप्न ह्रदय मथकर मिलते हैं,
मूल्य बडा उनका तिसपर भी
एक सत्य के ऊपर होती
सौ-सौ सपनों की कुर्बानी ;

सोच न कर सूखे नंदन का
देता जा बगिया में पानी ।
(नीड का निर्माण फिर पेज 226)


हुआ करती जब कविता पूर्ण,
हुआ करता कवि का निर्माण;
अमर हो जाता कवि का कंठ
गूंजकर मिट जाता है गान !
(नीड का निर्माण फिर पेज 230)

स्वप्न भी छल, जागरण भी ।
भूत केवल जल्पना है,
औ’ भविष्यत कल्पना है,
वर्तमान लकीर भ्रम की ! और है चौथी शरण भी ?
जानता यह भी नही मन
कौन मेरी थाम गर्दन
है विवश करता कि कह दूं, व्यर्थ जीवन भी, मरण भी।
स्वप्न भी छल जागरण भी।
(नीड का निर्माण फिर पेज 257)


क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं ?
...

कौन है जो दूसरे को
दुःख अपना दे सकेगा ?
कौन है जो दूसरे से
दुःख उसका ले सकेगा ?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं ?

क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे एसी डगर पर,
हर पथिक जिस अपर अकेला,
दुःख नही बंटते परस्पर,
दूसरों की वेदना में,
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज,
हर्ष केवल वह छिपाता ;
तुम दु;खी हो तो दुःखी मैं
विश्व का अभिशप भारी !

क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूं ?

अभय शर्मा (अभय भारती(य)), 18/19 जनवरी 2009 00.10 आई एस टी।

पुनश्चः आज मै अपने अहिंदी भाषी मित्रों व परिचितों से क्षमा चाहूंगा, आजीवन कवि बच्चन हिंदी के प्रति जिस तरह समर्पित थे अगर कुछ अन्य लोग भी उनका साथ देते तो शायद हमें अपनी राष्ट्र-भाषा मिल गई होती, एक उत्तम प्रयास अमिताभ बच्चन ने कौन बनेगा करोडपति के प्रथम अवतरण में अवश्य किया था उसके बाद शायद निर्माता आदि को लगा हो कि इस कार्यक्रम के कारण हिंदी लोगों में अधिक लोकप्रिय हो रही है उन्होने द्वितीय संस्करण में अमिताभ को अंग्रेजीनुमा हिंदी का प्रयोग करने के लिये बाध्य किया होगा अंततः उन्हे हटाकर शाहरूख खान को कार्यक्रम का कर्णधार बनाया गया जिनसे अगर आप कभी हिंदी में भी प्रश्न पूछेंगें तो उनके उत्तर वे 10 में से 9 बार अंग्रेजी में ही देने के लिये प्रसिद्ध हैं , वह भी एक अच्छे कलाकार हैं बस फर्क यही है खाते हिंदी की है गाते अंग्रेजी की हैं, मुझे उनसे कोई वैमनस्य नही है, शायद अमिताभ बच्चन के बाद अगर किसी आधुनिक हिंदी अभिनेता का नाम लेने की बात होगी तब किंग खान का नाम ही मेरी जुबान पर आये ! यह कार्यक्रम इतना अधिक प्रचलित हुआ थ कि अमुक भारतीय ने क्यू एंड ऎ नामक उपन्यास लिख डाला, ब्रितान डैनी बायल ने बहुचर्चित स्लमडाग मिलियनायर नामक फ़िल्म भी बना डाली जिसका हिंदी नाम स्लमडाग करोडपति रखा गया है, उन्हे या तो स्लमडाग से विशेष प्यार रहा होगा या फिर हिंदीकरण के उचित नम न मिलने कि स्थिति में उन्हे ऎसा करने को बाध्य होना पडा हो सकता है । मुझे उनसे सहानुभूति है साथ ही उन सबसे भी सहानुभूति है जो समझते है कि देव पटेल या फ़्रॆडा (या फ़रीदा) पिंटॊ ही मुख्य भूमिकाओं के लिये उपयुक्त कलाकार थे, मूलतः तो फ़िल्म अंग्रेजी है, अंग्रेजों के अनुरुप अंग्रेजी बोलने वालों को प्राथमिकता अगर दी गई तो इसमें हर्ज ही क्या है । ए आर रहमान पाश्चात्य संगीत से प्रभावित है साथ ही प्रतिभाशाली भी संगीत का पक्ष उन्होने दमदार रखा है तथा ग्लोबल स्तर पर इस फ़िल्म के लिये संगीत अवार्ड जीत कर भारत को सम्मानित भी किया है। बाकी विचार फ़िल्म देखने के बाद देना ही उचित या उत्तम रहेगा ।

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