आदरणीय भाईसाहब,
सादर प्रणाम,
इधर कई दिनॊं से कविता तो लिखीं पर कथानक हिंदीं में न लिखा था सोचा अज इस कमी के भी पूर्ति कर दी जाय, कल कई सारे पन्ने क्या भूलूं क्या याद करूं के पढ डाले, उसके बद कुछ लिखने का मन हुआ कलम द्वारा रात को लिखकर आज टाइप किया, यहां प्रस्तुत कर रहा हुं - कुछ शब्द य कहिये पुनश्च वाला भाग असंगत लगे, फिर भी आज से जुडे रहने के उद्देश्य से ही यहां लिख दिया -
डॉक्टर बच्चन की आत्मकथा पढते हुये यह बोध अवश्य हो रहा है कि वे किस महान प्रवृति के असाधारण मनुष्य रहे होंगें । उनके जीवन में कितनी यंत्रणायें उन्होने भोगी, कितने कष्ट उठाये या किन परिस्थितियों के चलते उन्होने उच्च शिक्षा ग्रहण की यह सब जानने के पश्चात उनकी साधना एवं लगन के प्रति आज नतमस्तक होने को जी चाहता है ।
सुलभ प्राप्त अवसर, सुनिश्चित दिनचर्या तथा स्वतंत्र भारत में पल-बढने के बाद भी विकास या प्रगति के मार्ग पर स्वयं अपने आप को अत्यंत दयनीय स्थिति में पाता हूं । मानसिक स्तर पर उच्च कोटि का विकास डॉक्टर बच्चन ने सहज ही प्राप्त कर लिया इस सोच वाले कदाचित सत्य से परिचित न होंगे।
विसंगतियों, कठिनाइयों य मुश्किलों के जिस दौर से वे गुजरे शायद वे सभी उनकी तपस्या में सहायक ही सिद्ध हुये होंगे, एक कहावत है सोने के गहने बनाने के लिये पहले उसे गलाना पडता है, डॉक्टर बच्चन के संघर्ष ने उनकी प्रतिभा को चार चांद लगा दिये, वे अनन्य हैं ।
अभय शर्मा, 6 जनवरी 2009
पुनश्चः आज भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे प्रतिभाशाली खिलाडी कपिल देव की 50वी वर्षगांठ है, वे 1983 में विश्व कप क्रिकेट जीतने वाले एक्मात्र कप्तान हैं, आज भारतीय क्रिकेट बोर्ड उनकी अवहेलना मात्र इसलिये कर रहा है कि उन्होने आई सी एल की स्थापना की, वाह मेरे भारत, तुम्हारा जबाव नही – कहना तो यह चाहिये कि कपिल तुम्हारा जबाव नही । इस अवसर पर मंसूर अली खान पटौदी द्वारा दी हिदायत कि हॉकी की जगह क्रिकेट को अपना राष्ट्रीय खेल मान लेना चाहिये सोचकर हंसी आती है जिस देश में कपिल देव जैसे खिलाडी के उपेक्षा हो उससे इस तरह की उम्मीद रखना बेबुनियादी है। वैसे भी क्रिकेट कितने देश खेलते है या आज भी राष्ट्रीय स्तर पर चल रही रणजी प्रतियोगिता देखने कितने महान क्रिकेट प्रेमी मैदान पर पहुंचते है कोइ इनसे जाकर पूछे । किसी ने सच ही कहा है अगर सभी जगह साधारण चिडिया दिखाई देंगी तो क्या मयूर के सर से राष्ट्रीय पक्षी का ताज जा सकता है, मै लुप्त प्रायः होते राष्ट्रीय पशु बाघ के विषय में सोच कर दुविधा में हूं कहीं कल गली के कुत्तों को ही राष्ट्रीय पशु का दरजा देने की बात ही हमारे सिर ना आन पडे । मेरा आशय क्रिकेट या अन्य किसी खेल अथवा पशु-पक्षी की अवहेलना करना नही है अपने मानदंडों के प्रति सचेत रहना आवश्यक है कल कहीं महात्मा गांधी की जगह राहुल गांधी को हमें राष्ट्र-पिता मानने को बाध्य न होना पड जाये। जागो भारत जागो ।
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