Friday, November 7, 2008

डॉ. हरिवंशराय बच्चन की एक कविता

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

पुस्तको में है नहीं छापी गई इसकी कहानी
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जबानी

अनगिनत राही गए इस राह से उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस परछोड़ पैरों की निशानी

यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी पंथ का अनुमान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
यह बुरा है या कि अच्छा व्यर्थ दिन इस पर बिताना

अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना
तू इसे अच्छा समझा यात्रा सरल इससे बनेगी

सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना
हर सफल पंथी यही विशवास ले इस पर बढ़ा है

तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

है अनिश्चित किस जगह पर सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर बाग़ वन सुंदर मिलेंगे

किस जगह यात्रा खतम हो जायेगी यह भी अनिश्चिता
है अनिश्चित कब सुमन कब कंटकों के शर मिलेंगे

कौन सहसा छूट जायेंगे मिलेंगे कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा तू न ऐसी आन कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

- डाक्टर हरिवंशराय बच्चन

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