परम प्रिय अमित जी,
सप्रेम सादर प्रणाम,
सप्रेम सादर प्रणाम,
सुबह से ही मन कह रहा था कि आज विश्व एड्स दिवस के उपलक्ष्य पर अपने कुछ विचार आप के सहित अन्य लोगों के सामने रख पाता, खासकर इसलिये भी कि किसी समय पर मैनें कुछ अध्ययन इस विषय पर कभी किया था, सामाजिक रूप में कुछ कम पर वैज्ञानिक स्तर पर थोडा बहुत आज से बीस वर्ष पहले किया अर्जित ज्ञान शायद इतने लम्बे अंतराल में अधिक महत्व न रखे फिर भी यह तो मै कह ही सकता हूं कि विषय की जानकारी होने के नाते मेरे विचार असलंग्न असंबद्ध नही लगेंगें ।
रीट्रो वायरस पर आधारित यह रोग मुख्यतः तीन प्रकार से हमारे शरीर में आक्रमण करता है – पहला इससे ग्रसित किसी व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध द्वारा, ग्रसित मां से उत्पन संतान भी इसका शिकार बन सकते है तथा दुर्घटना वश इन्फ़ैकटेड इंजैक्शन के पुनः प्रयोग उपयोग द्वारा, कुछ नये कारण यदि सामने आये हों तब भी उनकी संक्रामकता से हम परिचित नही हैं ।
वायरस या विषाणु हमारी कोशिकाओं में प्रवेश कर इसकी प्रजनन प्रणाली का उपयोग कर अपना भी प्रजनन करते रहते है, इनकी मात्रा बढ जाने पर कोशिका अतिरिक्त अवयवों के अभाव में अपना सुनिश्चित कार्य कर पाने में असमर्थ हो जाते है, नष्ट हो जाते हैं । यहां अधिक विस्तार में जाये बिना यह भी बता देना उचित रहेगा कि एड्स वाइरस सामान्यतया पाये जाने वाले विषाणुओं से भिन्न है, यह डीएनए के बजाय आरएनए पर आधारित वायरस है।
गत 20 वर्षों से 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस की स्थपना सामाजिक दृष्टि से की गई है, इसके अंतर्गत एड्स संबंधित उन सभी पहलुओं पर विशेष जानकारी उपलब्ध कराना है जिसके द्वारा इससे पीडित लोगों को सहायता मिल सके, बहुत सी जानकारी नैट पर उपलब्ध है लगभग विश्व के सभी बडे शहरों में एड्स केन्द्र इस दिश में कार्यरत है । विश्व स्वास्थ्य केन्द्र के अतिरिक्त कुछ अन्य विश्व्स्तरीय संगठन भी सहयोग प्रदान कर रहे हैं ।
आवश्यकता है कि लोग इस विषय में समुचित जानकारी का लाभ उठाकर इस संक्रामक रोग से अपनी सुरक्षा कर सकें । यह अनायास ही आपके शरीर में प्रवेश नही कर सकता पर साथ ही एक बार प्रवेश करने पर यह आपके अतिरिक्त आपकी पत्नी, प्रेयसी या किसी अन्य व्यक्ति जिसके साथ भी आप यौन संपर्क करेंगें उनमें भी प्रतिपादित होगा, इन संबंधों से उत्पन्न होने वाली संतान भी निश्चित ही इस भयानक वाइरस के शिकार बनेंगें । आज भी एड्स का समुचित इलाज हमारे वैज्ञानिक अभी तक नही खोज पाये है इसीलिये यह रोग अभी तक अत्यंत चिंता का विषय बना हुआ है, सैद्धांतिक स्तर पर एन्टीसेंस टैक्नोलोजी से कुछ आशायें थी पर प्रायोगिक स्तर पर इसकी विफलता से अभी तक कोई भी कारगर उपाय एड्स वाइरस को निष्क्रिय करनें में सफल नही हो सका है । एसे ही रोगों के लिये कहा गया है – रोकथाम उपचार से श्रेष्ठ है ।
अभय शर्मा, भारत, 1 दिसंबर 2008 11 बजकर 45 मिनट रात्रि प्रहर
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