Respected Brother,
Sadar Charan Sparsh,
Well said, there is never ever a necessity of communicating with names of individuals especially when the collective thought is similar as in the case of your reactions to our comments. I believe this way every one would get the feeling that as if you are replying to him/her specifically! Here is a poetry I had written to honor Dr. Bachchan - not the best but the recent, kavi ka samman earlier on my website was probably a shade better! yet I do not hesitate to share what I think and wish others to know of me and my interaction with the world of Dr. Bachchan -
यदि कर पाता कुछ गुण बखान
कह पाता कुछ देकर सम्मान
बच्चन, हे मेरे कवि प्रधान
क्या कलमवीर थे तुम महान
शब्दों में शब्द नही मिलते
है भाव मेरे भी अधोखिले
विक्सित हो होकर ध्यान मग्न
कण कण मेरा तुमको अर्पण
मधुशाला के रचियता को
है अभय कर रहा आज नमन
इस जग मे कवि कितने आये
कितने आकर फिर चले गए
बच्चन की बात निराली है
कविता उनकी मतवाली है
नीड का निर्मांण फिर पढ़
बसेरे से दूर था मैने पढ़ा
क्या भूलूं क्या याद करू
दशद्वार से सोपान तक पढ़
इन चार खंड में यहां वहाँ
था गद्य तुम्हारा बसा रचा
नही कवि कि थी कोई कल्पना
थी सत्य की यह अनुपम रचना
पढ़ा तुम्हारा लिखा जगत ने
यह बच्चन की अद्भुत साधना
पढ़कर मन भावुक हो जाता
फिर भावों में था खो जाता
संघर्ष तुम्हारे जीवन का
है पथ दर्शाता मानव का
हे कवि महान शत-शत वंदन
अमृत भी करता अभिनंदन
अभय भारती(य), 23 दिसंबर 2008 07.18 (प्रातः)
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