Monday, October 5, 2009


परम प्रिय एवं आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श

आज मन अत्यंत प्रसन्न है, मात्र इसलिये नही कि आपने अपने चाहने वालों के प्रति अपने भाव स्पष्ट रूप से रखने का सफ़ल प्रयास किया है, इसलिये भी नही कि आपके प्रति हमारी भावनाओं को बल मिला है, या इसलिये भी नही कि आपके द्वारा आज पहली बार हम लोगों को इतना अच्छा वक्तव्य पढ़ने को मिला हो ।

आज विशेष प्रसन्नता का विषय यह है कि इन सब बातों से उपर उठकर आज आपने जो बातें यहां कही उनमें एक विशेष आत्मीयता की झलक साफ ही दृष्टिगोचर हो रही है ।

हम लोगों को इस बात का बहुत पहले से पता है कि आपके मन में इस विस्तारित परिवार के लिये कितना प्रेम-प्यार आपके दिल में बसा हुआ है, अच्छी बात तो यह है कि कुछ एकाध लोगों को अगर छोड़ दें तो हममें से भी अधिकांश लोगों ने इस प्रेम-प्यार को आगे बढ़ाने में समुचित योगदान दिया है, प्यार तो भाई बांटने से ही बढता है, अगर मै आप से प्यार करता हूं तो मेरा आपके प्रति प्यार शायद एक कलाकार के लिये ही नही वरन उस मानव-विशेष के लिये भी है जिसे अपनी सीमा में रहते हुये भी सबसे प्यार करना जताना बखूबी आता है । आप हमारे लिये प्रेरणा के एक ऎसे अक्षय स्त्रोत हो जिससे हमें दिन-प्रतिदिन नये भाव नया कुछ सीखने को मिलता है मिलता रहता है तथा भगवान से अभ्यर्थना है कि आगे भी मिलता रहे ।
वास्तव में पिछले दो दिनों से मैं अपने आपको सही प्रकार से व्यक्त करने में असमर्थ महसूस कर रहा था, आपके किसी भी निर्णय से मै बिल्कुल भी असहमत नही हूं तथापि मेरे कहे को कुछ लोगों ने या शायद स्वयं आपने भी अगर गलत समझा हो तो इसमें गलती आपकी या समझने वाले की नही मेरी ही अधिक है । मै जानता हूं कई बार पहले भी मेरे साथ ऎसा घटित हो चुका है मै कहना कुछ चाहता हूं पर कहते-कहते भाव इतनी तेजी पकड़ लेते हैं कि कुछ एक भाव लिखने से मै चूक जाता हूं । मै यह भी जानता हू कि मुझे किसी भी प्रकार की सफाई देने की विशेष आवश्यकता नही है, आप के अतिरिक्त यहां लिखने वाले सभी सदस्य या कहूं भाई-बहन तो ज्यादा ठीक रहेगा, इस बात से अपरिचित नही है कि अभय के मन में किसी के भी प्रति दुर्भावना तो नही ही है । सुधीर के प्रति प्रेमवश मै एकाध बार कुछ उग्रतापूर्ण बातें अगर कह भी गया हूं तो उसे यह अवश्य जान लेना चाहिये कि उसके यहां न लिखने से उससे अधिक कष्ट मुझे हो रहा हाय, अगर मेरे कारण वह ऎसा कर रहा है तो यह कहते हुये मुझे कोई सकोच नही है कि सुधीर को वास्तव में मै उतना ही प्यार करता हूं जितना अपने छोटे भाई अजय को, इस बात का कोई प्रमाण नही दे सकता अवसर आने पर उससे भी पीछे नही हटूंगा । अपने मन की बात मैने कह दी है हो सकता है उसके मन में कोई एसी बात हो ही न, मात्र व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण ही वह यहां ना आ पा रहा हो ।

यहां आज मै अपने सभी मित्रों के प्रति कुछ चंद बातें कहना चाहूंगा, नाम लेकर लिखना चाहता था पर जानता हूं हिंदी में सब लोगों के सही नाम शायद मै लिख तो पाउंगा पर सही लिख पाउंगा इसमें मुझे संदेह है फिर कुछ एक क्षणों के लिये तो आप भी हम लोगों के मित्र बन जाते है ।

मेरे सभी मित्रगण, बंधु, सखा एवं भगिनियों

आप जितना प्यार मुझे देते हो या करते हो उसका मै सही उत्तराधिकारी ना होते हुये भी आप सभी के प्रति भी उतना ही प्यार आज व्यक्त करना चाहता हूं, अगर उससे अधिक कर सकता होता तब भगवान के प्रति मेरी श्रद्धा भावना अवश्य ही बढ़ जाती । मेरे द्वारा कही किसी बात से अगर कभी भी किसी को कुछ कष्ट पहुंचा हो तो मै अवश्य ही उन लोगों से क्षमा-याचना करता हूं कि वे मुझे अवश्य ही माफ़ कर दें । आप सभी को मै यकीन तो नही दिला सकता पर कह अवश्य सकता हूं कि किसी प्रकार का भेदभाव रख कर मैने आपसे प्यार नही किया है, यहां तक कि मैने अपने विदेशी मित्रों को भी उतना ही चाहा है जितना अपने भारतीय भाई-बहनों को, अगर किसी क्षण किसी का नाम नही लिया या किसी ने मेरा नाम नही लिया त मुझे अच्छा लगता है क्योंकि मै सदा ही सभी का नाम नही लिख सकता, यह उन सबके साथ मेरे द्वारा अन्याय होगा जिनका नाम लिखने से मै चूक जाता हूं , तथापि इस दिशा में एकाध बार प्रयास किया भी था जैसे कि ईद के मुबारक अवसर पर । उसमे भी कई त्रुटियां रह गईं थी यह बात कम लोग ही जान पायेंगें । आप सभी के प्रति मेरे मन में अपार स्नेह है यह किसी भी सूरत में कम होने वाला नही है । मतभेद की अपनी जगह है और स्नेह-प्रेम की अपनी अलग ।

आप सभी के प्रति मेरा स्नेह-प्रेम सदा ऎसे ही बना रहे प्रभु से बस इतनी सी विनती के सात यह पत्राचार यहीं समाप्त करने की आज्ञा चाहूंगा
- अभय शर्मा 6 अक्टूबर 2009, 9.50 प्रातः काल

No comments: