Thursday, January 22, 2009

Two Poems - 22/23 January


आजादी के दीवाने

इतिहास के पन्नो पे थी लिखीं कहानियां
उस जुल्म की अब तक नही मिटती निशानियां
हर वक्त मुझे याद है वो आती जवानियां
थे कैसे जिगर वाले था डरा भी ब्रितानियां

हे भगत हे चंद्रशेखर हे मेरे सुभाष
हे राजगुरु बिस्मिल हे लाल-बाल-पाल
तुमने तो अपने दूध का था कर्ज चुकाया
इस देश की खातिर था बडा दांव लगाया

नाम कितने और भी है उनकी कहानी
है और किसी दिन मुझे है तुमको सुनानी
बंगाल के कितने ही अनोखे वो साल थे
पंजाब के तो जैसे अनगिनत लाल थे

नही भूल कर भी भूलना इनकी कहानियां
एक फूल तुम उन्हे भी चढ़ाना निशानियां
जिस दिल में उनकी याद बसी है मेरा भाई
अब मिलके रहेंगें कसम है आज ही खाई

हर मां को तुम पे नाज है हे सच्चे सपूतों
हम धन्य है धरा भी तुम्हे प्यार है करती
फिर आज अपने देश की खातिर सही चलो
एक जन्म नया आज अपने देश में ही लो

अभय भारती(य), 22/23 जनवरी 2009 00.51 घंटे

आदरणीय भाईसाहब,
सादर चरण स्पर्श,

यहां यह व्यक्त करना आवश्यक है कि यह सवाल मैं स्वंय से ही कर रहा हूं, अगर किसी अन्य को भी अपने आपसे यह पूछना अच्छा लगे तो समझूंगा मेरा प्रयास सफल रहा ।

लिखना-पढ़ना कहना-सुनना

लिखने में जो मजा है
वो पढ़ने मे कहां है
कहने में जो मजा है
वो सुनने में कहां है

( पर याद रहे हर पल
प्यारे मेरे भाई )

जो पढ नही सकता
कभी वह लिख नही सकता
जो सुन नही सकता
कभी कुछ कह नही सकता

लिखने से पहले कुछ
कभी पढ़ कर उसे देखो
कहने से पहले बात कुछ
जरा सुनके तो देखो

वह बात पते की है जो
पढ़ कर लिखी गई
है बात कायदे की जो
सुन कर कही गई

अभय भारती(य), जनवरी 22 2009, 13.45 घंटे आई एस टी
(The essence translates something like this, I know it can never ever match the original –

Is writng not a bigger fun than reading and whether telling is not more lovable than listening, we should not forget – those who can not read can probably not write and those who can not listen can probably never speak! That before we write we shall check the readability and before making any utterances check its audibility – that writing alone is noble that has been judged with prior readability and only those said words are meaningful that are our responses to others.

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