Friday, November 7, 2008

A New Role for Amitabh Bachchan - Rediscover India


“Longest period in History for a paint job - 219 years to paint the WHITE HOUSE , BLACK

“In life..MANY people help you when it suits THEM; BUT very FEW help when it suits U.

Make the FEW and … BE the FEW to the MANY.”

Respected Brother,
Sadar Pranam,
I take an objection to paint the Obama victory thus! It is just not a matter of change it is something to do with a change in the surroundings!

I feel if one person who could orchestrate change in India it could have been you, that you deny it is something that is difficult to change! I can understand your point of view! yet I once again remind you that even lord Hanuman was to be reminded of his capabilities and it is only in that context that I oft repeat my request ...

You ought to take us to where we could weave a new India, you must take us where we could love each and every one around us, you need to take us into confidence that like every drop counts in the ocean every individual has a role to redefine India! That you are capable of an Obama like feat I request you to put the best foot forward and initiate a thinking that should catalyse our rebirth as a nation! As a nation that counts, as a nation that cares and respects its individuals, as a nation that knows its rights and wrongs! as a nation that can really make itself the largest democracy not just in numbers but figuratively as well!

We must take some assignments even if it does not suit us but suits the others as you too have said in one of the few and many quotes! be the few to many Indians who look upon you not as a saviour, not as a messiah not even as the living legend that you have become for your stupendous efforts in the chosen profession! Extend that role a bit further, just walk out and talk to us as a common Indian and share with us what we all can achieve collectively! One need not be a Bharat Ratna or the Prime minister of the country to effect a change, if one has a following and has ideas that can be followed then followers will always exist!

I have a feeling that there are a lot of good people on this earth and even in India that is why the terrorsits and such elements are not able to paint the earth with their desired colors. There is still hope that we can comeback to lead a peaceful and harmonious life if we decide so! That it is not difficult to practice a life style that bringsforth brotherhood as one of the topmost ingredient in our lives and surroundings! No small wonder that I have a brother who is as tall as (physically as well as otherwise) only tall can be! I do not call you brother just symbolically I mean it in the minutest of details. I know you could symbolise brotherhood as none other could do in this world! Not even Obama! (Though I am convinced that he is not far behind in the race to associate America into a great country that could augur well for his countrymen!).

We must take a step forward to do something constructive every day, we should try to pace up ourselves into a bandwagon where love and care are the keywords and service to fellow human beings is on the front seat! That one does need a driver to move such a vehicle forward I call upon you to be the driver ( i do not mean to belittle you by using such word!).

If we could acclimatize ourselves for a change we can only increase our numbers from one to billions in the due course of time. Man by nature imitates others, someone has to set the standard rest would not mind tiptoeing to the ideas if they are worth following, if they bring peace and prosperity to them as individuals! I dictate you to become that standard that people can follow! I am once again sorry for using such harsh words as dictate but then I am helpless as there is no other way to tell the able and capable of what the society expects of him!

Brother, some of the words I might have used today might appear harsh or tough in their nature yet if you are able to contemplate the hidden meaning you would not be angry with me or anyone who suggests similar roles for you!

I think I must call it quits for today, we must not just set examples for others (including someone as big as you!) but also make sincere attempts to improve the life for ourselves and for others. Such acts need not be recounted they become visible on their own!

I take a bow down to touch your feet to get your blessings!

Your supporter from the heart, mind and body
Abhaya

Abhaya Sharma, India, November 8 2008, 09:34 Hours IST

4 comments:

Blogger said...

Hi Mr. Abahaya S

Yes indeed, the comments:

“Longest period in History for a paint job - 219 years to paint the WHITE HOUSE , BLACK"

whosoever has made them, are in extremely poor taste. We should stop differentiating people by the color of their skin rather than their capability and capacity to do a job well. I am very unhappy that some people still have the 400year old mindsets. What kind of progress is this?
Good wishes.

Subhash Kaura

Unknown said...

व्यक्ति-पूजा के शिकार अमिताभ बच्चन

मुझे लगता है, हर व्यक्ति को अपना मूल्यांकन स्वयं करना चाहिए। अपने गिरेबान में झांककर देखने की हिम्मत भी उसे स्वयं ही करनी चाहिए। परंतु हम दोनों में से कुछ भी स्वयं नहीं कर पाते। या फिर जब कभी करते हैं, तो स्वयं में सिर्फ आत्म-प्रदर्शन और आत्म-सुख ही खोजते हैं। खुद के कद को खुद ही छोटा करते हुए दूसरों को बड़ा मान-बताकर उनकी पूजा में सलंग्न हो जाते हैं। यह पूजा दरअसल व्यक्ति-पूजा कहलाती है। किसी की इज्जत करना अपनी जगह है, लेकिन व्यक्ति-पूजा खुद के झुकने की निशानी है।

हमारे साथ यही सबसे बड़ी दिक्कत है कि हम अपने आप से कहीं ज्यादा 'थोपी गईं आस्थाओं' में यकीन करने लगते हैं। अपनी सुविधानुसार हम अपनी आस्थाएं खुद ही बनाते और खोजते हैं। मतलब कभी जानवारों में आस्थाएं खोजने लग जाते हैं, कभी किन्हीं पुरानी मुर्तियों में, तो कभी अपने से ही दिखने वाले व्यक्तियों में। हमारी आस्थाओं और व्यक्तिपूजा का कहीं कोई मानक नहीं है, जब जहां जिसे चाहा भगवान बना दिया और अपने सुख उसमें तलाशने लगे। यह हमारी असफल कोशिश होती है।

दरअसल, मेरा इशारा उस व्यक्ति की तरफ है, जो महज एक कलाकार है, मगर हमने अपनी अंध-आस्थाओं और व्यक्ति-पूजा की परंपरा को निभाते हुए उसे आज 'भगवान' बना दिया है। गजब तो यह है कि उस कलाकार ने खुद को भगवान बनाए जाने या अपनी व्यक्ति-पूजा का कभी भी खुलकर या दबी जुबां में विरोध नहीं किया।

दरअसल, मैं बात कर रही हूं कलाकार अमिताभ बच्चन की। अमिताभ बच्चन को मैं सिर्फ कलाकार ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन कलाकार मानती हूं। उन्हें या उनकी फिल्मों को जब भी मैंने देखा, उनके अभिनय को बेहद सहजता से लिया और कलाकार अमिताभ बच्चन की जहां जरूरत समझी तारिफ भी की। कलाकार के अतिरिक्त मेरी निगाह में अमिताभ बच्चन की कोई इमेज नहीं बनती, न ही कभी बनाने की कोशिश की। मैं कलाकार अमिताभ बच्चन को बेहतर जानती हूं वनिस्पत सदी का महानायक या बिग बी के।

अक्सर जब मैं उन लोगों को देखती हूं, जिनकी निगाह में अमिताभ बच्चन कलाकार अमिताभ बच्चन नहीं सदी का महानायक ज्यादा हैं, तो उनकी सोच पर तरस आता है। सदी का महानायक जैसे उपनाम के आगे मुझे कलाकार अमिताभ बच्चन कहीं खोता हुआ दिखाई पड़ता है। दरअसल, अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक घोषित करने और भगवान बनाने वाले वे लोग हैं, जो खुद कलाकार नाम की परिभाषा से अनजान हैं और अपनी बेवकूफियों पर बल्लियों उछला करते हैं।

सवाल उठता है कि क्या अभिनय और कलाकार का आदि और अंत अमिताभ बच्चन ही हैं? क्या अमिताभ बच्चन के समकालीन कलाकारों की कोई हैसियत या इज्जत नहीं? आखिर अमिताभ बच्चन का हंसना, रोना, गाना, बीमार पड़ना या ब्लॉग लिखना ही क्यों हर किसी की चिंता और आकर्षण का कारण बना रहता है? मेरे लिए जितना अमिताभ बच्चन का अभिनय महत्वपूर्ण है, उतना ही राजेश खन्ना, विनोद मेहरा, शशि कपूर, संजीव आदि का अभिनय भी। क्या ये कलाकार कलाकार नहीं थे? ऐसा भी नहीं है कि इन सभी का कद अमिताभ बच्चन के कद से छोटा हो। बस, फर्क इतना है कि अमिताभ बच्चन ने बाजार और राजनीति का हाथ थाम लिया और ये कलाकार वह यह सब नहीं कर पाए। अमिताभ बच्चन ने व्यक्ति-पूजा को अपनी प्रसिद्धि का माध्यम बनाया लेकिन और कलाकार ऐसा नहीं कर सके। पर, यह तय है कि अभिनय के क्षेत्र में किसी का भी कद एक-दूसरे से कमतर नहीं है।

कैसी विडंबना है कि अमिताभ बच्चन का बीमार होना मीडिया से लेकर जन की चिंता का सबसे बड़ा कारण बन जाता है, लेकिन अभी पिछले ही दिनों मशहूर गायक महेंद्र कपूर का जाना न मीडिया की बड़ी ख़बर बन सका न ही जन के दुख का सबब। इस अपेक्षा में न दोष अमिताभ बच्चन का है, न महेंद्र कपूर का, दरअसल दोष हमारा ही है कि हम कलाकार को उसके कद से नापते हैं, व्यवहार या अभिनय से नहीं।

आजकल अमिताभ बच्चन का ब्लॉग-लेखन जबरदस्त चर्चा का विषय बना हुआ है। शायद अमिताभ बच्चन कोई अनोखा काम कर रहे हैं। हर अख़बार, हर पत्रिका उनका ब्लॉग छापने को बेताब है। इधर हिंदी में जबसे उन्होंने ब्लॉग लिखना शुरू किया है, मानो हमारे बीच कुछ अजूबा-सा ही घट गया है। अमिताभ बच्चन हिंदी फिल्मों में काम करते हैं और अगर वे अपना ब्लॉग हिंदी में लिख रहे हैं, तो इसमें इतना हैरानी की क्या बात है? दरअसल, उन्हें शुरूआत ही अपने ब्लॉग-लेखन की हिंदी से करनी चाहिए थी।

बहरहाल, हम ऐसा करेंगे तो नहीं, लेकिन अगर करते हैं, तो मुझे खुशी ही होगी कि हम अमिताभ बच्चन को सिर्फ कलाकार की निगाह से ही देखें, किसी 'सदी का महानायक' जैसे सामंती उपनामों से नहीं।
व्यक्ति-पूजा के शिकार अमिताभ बच्चन

मुझे लगता है, हर व्यक्ति को अपना मूल्यांकन स्वयं करना चाहिए। अपने गिरेबान में झांककर देखने की हिम्मत भी उसे स्वयं ही करनी चाहिए। परंतु हम दोनों में से कुछ भी स्वयं नहीं कर पाते। या फिर जब कभी करते हैं, तो स्वयं में सिर्फ आत्म-प्रदर्शन और आत्म-सुख ही खोजते हैं। खुद के कद को खुद ही छोटा करते हुए दूसरों को बड़ा मान-बताकर उनकी पूजा में सलंग्न हो जाते हैं। यह पूजा दरअसल व्यक्ति-पूजा कहलाती है। किसी की इज्जत करना अपनी जगह है, लेकिन व्यक्ति-पूजा खुद के झुकने की निशानी है।

हमारे साथ यही सबसे बड़ी दिक्कत है कि हम अपने आप से कहीं ज्यादा 'थोपी गईं आस्थाओं' में यकीन करने लगते हैं। अपनी सुविधानुसार हम अपनी आस्थाएं खुद ही बनाते और खोजते हैं। मतलब कभी जानवारों में आस्थाएं खोजने लग जाते हैं, कभी किन्हीं पुरानी मुर्तियों में, तो कभी अपने से ही दिखने वाले व्यक्तियों में। हमारी आस्थाओं और व्यक्तिपूजा का कहीं कोई मानक नहीं है, जब जहां जिसे चाहा भगवान बना दिया और अपने सुख उसमें तलाशने लगे। यह हमारी असफल कोशिश होती है।

दरअसल, मेरा इशारा उस व्यक्ति की तरफ है, जो महज एक कलाकार है, मगर हमने अपनी अंध-आस्थाओं और व्यक्ति-पूजा की परंपरा को निभाते हुए उसे आज 'भगवान' बना दिया है। गजब तो यह है कि उस कलाकार ने खुद को भगवान बनाए जाने या अपनी व्यक्ति-पूजा का कभी भी खुलकर या दबी जुबां में विरोध नहीं किया।

दरअसल, मैं बात कर रही हूं कलाकार अमिताभ बच्चन की। अमिताभ बच्चन को मैं सिर्फ कलाकार ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन कलाकार मानती हूं। उन्हें या उनकी फिल्मों को जब भी मैंने देखा, उनके अभिनय को बेहद सहजता से लिया और कलाकार अमिताभ बच्चन की जहां जरूरत समझी तारिफ भी की। कलाकार के अतिरिक्त मेरी निगाह में अमिताभ बच्चन की कोई इमेज नहीं बनती, न ही कभी बनाने की कोशिश की। मैं कलाकार अमिताभ बच्चन को बेहतर जानती हूं वनिस्पत सदी का महानायक या बिग बी के।

अक्सर जब मैं उन लोगों को देखती हूं, जिनकी निगाह में अमिताभ बच्चन कलाकार अमिताभ बच्चन नहीं सदी का महानायक ज्यादा हैं, तो उनकी सोच पर तरस आता है। सदी का महानायक जैसे उपनाम के आगे मुझे कलाकार अमिताभ बच्चन कहीं खोता हुआ दिखाई पड़ता है। दरअसल, अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक घोषित करने और भगवान बनाने वाले वे लोग हैं, जो खुद कलाकार नाम की परिभाषा से अनजान हैं और अपनी बेवकूफियों पर बल्लियों उछला करते हैं।

सवाल उठता है कि क्या अभिनय और कलाकार का आदि और अंत अमिताभ बच्चन ही हैं? क्या अमिताभ बच्चन के समकालीन कलाकारों की कोई हैसियत या इज्जत नहीं? आखिर अमिताभ बच्चन का हंसना, रोना, गाना, बीमार पड़ना या ब्लॉग लिखना ही क्यों हर किसी की चिंता और आकर्षण का कारण बना रहता है? मेरे लिए जितना अमिताभ बच्चन का अभिनय महत्वपूर्ण है, उतना ही राजेश खन्ना, विनोद मेहरा, शशि कपूर, संजीव आदि का अभिनय भी। क्या ये कलाकार कलाकार नहीं थे? ऐसा भी नहीं है कि इन सभी का कद अमिताभ बच्चन के कद से छोटा हो। बस, फर्क इतना है कि अमिताभ बच्चन ने बाजार और राजनीति का हाथ थाम लिया और ये कलाकार वह यह सब नहीं कर पाए। अमिताभ बच्चन ने व्यक्ति-पूजा को अपनी प्रसिद्धि का माध्यम बनाया लेकिन और कलाकार ऐसा नहीं कर सके। पर, यह तय है कि अभिनय के क्षेत्र में किसी का भी कद एक-दूसरे से कमतर नहीं है।

कैसी विडंबना है कि अमिताभ बच्चन का बीमार होना मीडिया से लेकर जन की चिंता का सबसे बड़ा कारण बन जाता है, लेकिन अभी पिछले ही दिनों मशहूर गायक महेंद्र कपूर का जाना न मीडिया की बड़ी ख़बर बन सका न ही जन के दुख का सबब। इस अपेक्षा में न दोष अमिताभ बच्चन का है, न महेंद्र कपूर का, दरअसल दोष हमारा ही है कि हम कलाकार को उसके कद से नापते हैं, व्यवहार या अभिनय से नहीं।

आजकल अमिताभ बच्चन का ब्लॉग-लेखन जबरदस्त चर्चा का विषय बना हुआ है। शायद अमिताभ बच्चन कोई अनोखा काम कर रहे हैं। हर अख़बार, हर पत्रिका उनका ब्लॉग छापने को बेताब है। इधर हिंदी में जबसे उन्होंने ब्लॉग लिखना शुरू किया है, मानो हमारे बीच कुछ अजूबा-सा ही घट गया है। अमिताभ बच्चन हिंदी फिल्मों में काम करते हैं और अगर वे अपना ब्लॉग हिंदी में लिख रहे हैं, तो इसमें इतना हैरानी की क्या बात है? दरअसल, उन्हें शुरूआत ही अपने ब्लॉग-लेखन की हिंदी से करनी चाहिए थी।

बहरहाल, हम ऐसा करेंगे तो नहीं, लेकिन अगर करते हैं, तो मुझे खुशी ही होगी कि हम अमिताभ बच्चन को सिर्फ कलाकार की निगाह से ही देखें, किसी 'सदी का महानायक' जैसे सामंती उपनामों से नहीं।

Abhaya said...

Subhash and Magar!

I never intend to support the statement regarding color discrimination! if you had noted I had taken objection in the very first line! I agree that sybhash too had done something similar!

Coming to Magar! I wish I could reply your sentiments and maybe also agree to some of your findings regarding Mr. Bachchan! albeit a few of them are wrong and I take objection to attaching vyakti puja being liked by Mr. Bachchan himself!

Now! I have been heavily in search of some single character who has a mass following in India, who could click with the masses! In our diverse country I do not find anyone elese who could come close to him.

Rahi baat mere ya anya logo ke unko bhagwan banane ya manane ki to iska bhi koi nyayochit tark na maine kabhi diya hai na kabhi dunga! meri to bas ek hi abhlasha hai, ki amitabh bachchan aage aaye hum logo se kuch aisa kahe jisame manavata ke prati hamare hindu hone ke prati, hamare ek rashtra hone ke prati hamari bhavanaon ko kuchh bal mil sake!

ise agar koi vyakti puja ka dosh dega to yah baat gale se nahe hi utar sakati hai! mai picchle 27 saal se mumbai mei hoon, ek baar bhi unse vyaktigat taur par nahi mila hoon na hi milne ki utkaT ichchha hai!

hahata to thha ki aapke blog ka uttar shuddh hindi mein doo lekin philhaal aap itna avashya jaan le ki kam se kam mai is baat ko sweekar nahi kar sakata ki Amitabh Bacchchan ne hum logo ko buddhu banaya hai, apani puja karvai hai, agar prem ko koi puja samajh le to ismei samajhane vale ki galti hi samajhi jayegi!

aap ke liye ek hindi blog nischit hi likhunga par asha hai aap apne man se baham aur galatfahamiyon ko nikaal de ki amitabh ko log bhagwan samajhate hain! agar samajhate hain to nadan hai anjan hai bhagwan shabd ka arth hi nahi samajhate!

Aaj ke liye itna hi kafi hai kisi aur din waqt nikaal kar Aapke kuchh anya baton ka bhi samadhaan kar paaonga aisa vichar hamesha mere man mein rahega!

Abhaya Sharma

Blogger said...

Dear Abhaya Ji

My comments were not directed towards you or what you had said.
It was about the contents and words used in the quote posted by Mr. Bachchan:

“Longest period in History for a paint job - 219 years to paint the WHITE HOUSE , BLACK"

Of course I know these are not his own words either - he has simply shared the quote with the bloggers. I have noted that you have clearly objected to it's contents.

Mahatma Gandhi was brown skinned but to me he is one of the greatest human beings ever born on this earth. What I have said is that the color of skin should not be given importance but the caliber of the person is what should matter.

Good wishes.

Subhash