Wednesday, December 10, 2008

भारत के प्रतीक

आदरणीय भाईसाहब,
सादर चरण स्पर्श,
अगर उसकी यही इच्छा है कि वह आपसे मिल सके तो मेरा तो यही कहना है कि इसमें विशेष आपत्ति हमें नही होनी चाहिये क्या पता वह आपको उस सबसे अधिक जानकारी दे सके जो पुलिसकर्मियों को देने में अपने अपको असमर्थ पा रहा हो खैर यह आपका व्यक्तिगत मामला है मै इससे अधिक कुछ नही कहूंगा, हां अगर हो सके तो आप उसे यह कविता सुना सकते हैं जिसे मैने आज सुबह कुछ देर पहले हम सब भारतवासियों के लिये लिखी थी -


भारत के प्रतीक

कहना न होगा अब हमको
मन के भीतर झांक देखकर
तन से श्रम कर जन से जुड़कर
अपने भावों को संचित कर
जीवन की बाधा से बचकर
हीन भाव को अलग हटाकर
दोषारोपण को बाहर कर
अपने अपने जीवन पथ पर
फिर से एक बार फिर मिलकर
बन कर भारत के प्रतीक
फिर चलना होगा

देश को आगे करना होगा
मानवता की जड़ सहला कर
पौधा नया लगाना होगा
बनकर भारत के प्रतीक
हमको तुमको अब बढना होगा
राहों में तूफान मिलें
या आंधी झंझावात मिलें पर
उनसे बचकर कदम मिलाकर
मार्ग नया फिर चुनना होगा
बनकर भारत के प्रतीक फिर
इस धरती पर जीना होगा
आओ मिल संकल्प करें हम
अब देश की खातिर मरना होगा
बनकर भारत के प्रतीक फिर
अभय रूप धर अमृत हमको पीना होंगा

अभय भारती(य) 08 दिसम्बर 08

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