![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDXgNh1fK6Ir8ly6OMmTx3MV0o0a9EebRsTqu80mfPvfKFzr_uO2ZesgjH1RIiMk3QPrIjxzxSiHAf8s1A0iTDtDHx77RSn3jLrPzBLxQ0cEvwPx76MTsUKlxMpBctpmVlSYhR7BSqFGM/s400/harivanshrai_bachchan_4.jpg)
आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श
अभी-अभी डाक्टर हरिवंश राय बच्चन मुझसे क्या कह रहे थे - आप भी सुनो -
कल जब मेरी कविता में
तुम मुझको पा जाओगे
नही मिले नश्वर शरीर से
अंतर्मन से मिल पाओगे ।
उठो पुत्र तुम धीर धरो
धरती के रण का वीर बनो
मैं चला गया जग से तो क्या
कविता में अपनी नही जीता क्या ?
सुनो ध्यान से एक बात
यह जग तो बस एक मेला है
अपनी बाजी मैं खेल चुका
अब नया यहां का खेला है ।
अभय शर्मा
19 जनवरी 2010 09.35 प्रातः
No comments:
Post a Comment