Thursday, December 10, 2009

कविताई

कविताई

सोच रहा था कई दिनों से
कविता लिख दूं इंग्लिश में
मन में भाव नही आते थे
नही आती भाषा भांति भली

रहने दो अब क्या बतलाउं
दिल की बातें गली-गली
माना अंग्रेजी है प्रचलित
समझे जिसको जॉन अली

मै तो पढ़ा-लिखा अनपढ़ हूं
बस हिंदी की हूं एक कली
नही मुझे अफसोस अचंभा
जब भाषाओं की बात चली

नही, नही मैं नही लिख सकता
कविता अंग्रेजी में भी
लिख सकता हूं सिर्फ़ अकेले
कविता बस हिंदी में ही

पढ़ लेता हूं अंग्रेजी मैं
समझ भी लेता कभी-कभी
जब भी लिखता हूं लेकिन मै
सूझी है हिंदी तभी-तभी

नही, नही मैं नही लिख सकता
कविता अंग्रेजी में भी

अभय शर्मा
मुंबई, 11 दिसंबर 2009 9.00 प्रातः प्रहर


आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श

कुछ भाव यूं ही उमड़ रहे थे, कविवर बच्चन जी की बात याद आ गई कभी उन्होने कहा था कि कविताई हमेशा साथ नही देती जब भी भाव आयें उन्हे लिख ही लेना चाहिये, पता नही बाद में वे भाव कभी दोबारा दिमाग में आये या न आयें -

आप सबके लिए कुछ क्षण पहले लिखी कविता प्रस्तुत कर रहा हूं इस आशा के साथ कि बिना किसी आशय या राजनैतिक रंग के साथ ही इस कविता का आप सब आनंद उठा सकें - मै अपने विदेशी मित्रों से क्षमा चाहूंगा इस का अनुवाद किसी अन्य दिन कर सका तब अपने आपको धन्य समझूंगा -