सादर चरण स्पर्श
आज मेरा अवकाश होने की स्थिति में आपको मुझे कुछ ज्यादा ही झेलन पड़ सकता है, पर यहां पिछले एक घंटे के श्रम के बाद जो कुछ भी मैने टाईप किया है उसके प्रत्युत्तर की आपसे अपेक्षा अवश्य है, इसलिये नह कि आज मेरे मन में पीत-रेखा प्राप्त करने की लालसा जाग उठी है वरन इसलिये कि यह प्रश्न मै नही कर रहा हूं - आप लोगों ने डाक्टर बच्चन को जितना कमजोर समझा वे उतने कमजोर नही थे - आपकॊ उनके सवलों के प्रति कुछ न कुछ तो अवश्य लिखना ही पड़ेगा, मेरे नाम की कॊई अवश्यकता नही है, पर हां यह भी मेरी तरफ़ से एक श्रद्धाजलि के रूप में महाकवि को स्वीकार्य हो एसी प्रभु से मेरी प्रार्थना अवश्य रहेगी । वैसे तो आप कहोगे कि मेरी चोट के समय जो कुछ भी हुआ उसका दोष तो मुझे नही दे सकते, फिर भी उनकी आत्मा की शांति के लिये दो शब्द आप इस बिषय मे अवश्य लिखें ऎसा मेरा अनुरोध है आदेश देने की क्षमता ना मै रखता हूं ना मुझे ऎसा करना प्रियकर ही लगता है –
‘दशद्वार से सोपान तक’ पृष्ठ 483-484
कवि की वेदना
तेजी के साथ अर्थ-चिन्ता से तो मुक्ति मिल गई थी, पर परिवार में सौ तरह की चिन्तायें होती हैं, समस्याएं उठती है जिन्हे दूर करने के लिए, जिनका समाधान खोजने के लिए ध्यान, समय, श्रम देना होता है । मेरा कवि स्वभाव, मेरी कवि प्रकृति, इससे कितनी उद्विग्न होगी और उससे मेरे कवि मर्म में कितना व्याघात उपस्थित होगा इसको तेजी ने जितना पहचाना उतना किसी और ने नही । अपने 42 वर्ष के संसर्ग में उन्होने मुझे गार्हस्थ जीवन के इस पक्ष से एक तरह से अछूता रखा – मैं कहना चाहूंगा दोष की सीमा तक । उनकी इस प्रव्रत्ति में कभी-कभी मुझे दुराव की आशंका हुई । अपने बेटों के सामने भी उन्होने मेरी यह तस्वीर रखी है मैं कवि हूं, कलाकार हूं, भावप्रवण हूं, थोड़ी सी अप्रिय स्थिति मुझे बहुत परेशान कर देती है – अब तो बहुत दिनों से अलसर का मरीज़ हूं – किसी भी अशुभ घटित या समाचार से मुझे अनभिज्ञ रखना चाहिये क्योंकि उससे मेरा मानसिक तनाव बढ़ेगा – एसिडिटी बढ़ेगी, मैं बीमार पड़ जाउंगा । नतीजा उसका यह हुआ है कि तेजी के जीवन में, मेरे बेटों के जीवन में बहुत कुछ कष्टकर चिन्ताजनक आया है, रहा है, और कानों-कान मुझे खबर नही दी गई । घर भर अभिनय-कला में दक्ष है, किसी ने अपने चेहरे-मोहरे से, बात से यह संकेत नही दिया कि अंदर-अंदर क्या हो रहा है, क्या बीत रह है । कभी-कभी तेजी और अपने बेटों के इस रवैये को मैने अपनी उपेक्षा समझी है, अपने प्रति अन्याय समझा है । मै परिवार का एक अंग हूं, और कोई छोटा अंग नही – मानो तो सबसे बड़ा – तो मुझे परिवार के सुख-दुख-दुरवस्था में साझीदार होना चाहिए । मुझे लगता है कि मेरे प्रति लगाव की अतिशयता में घर के लोगों ने मेरी गलत तस्वीर बना रखी है । माना कि मैं कवि हूं, कलाकार हूं, भावप्रवण हूं, पर छुई-मुई नही हूं । बहुत जगह कोमल होकर भी कहीं बहुत कठोर भी हूं – वज्रादपि कठोराणि मृदुनि कुसुमादपि, मुझमें बहुत कुछ सहने, बर्दाश्त करने, झेलने की शक्ति है, शायद घर भर में सबसे ज्यादा किसने इस घर में इतन दुख-दारिद्र्य, इतनी कष्ट-चिंताकर स्थितियां, इतनी मौत -बीमारियां देखी हैं जितनी मैंने । मेरे व्यक्तित्व के इस पक्ष को नही देखा-समझा गय तो मुझे गलत समझा गया है । इस पर सबसे ज्यादा झुंझलाहट मुझे उस समय हुई जब अमित को बंगलौर में चोट लगी, पर वह मुझसे छिपा रखी गई ।
अमिताभ को पेट में चोट शनिवार को अपराह्न में अगी थी । शायद उसे गंभीर नही समझा गय था ।
पर रात भर जिस पीड़ा, जिस कष्ट में वह तड़पता रह उससे जया को स्पष्ट हो गया था कि चोट समान्य नही है, जिसके कारण कोई बाह्य उपचार कारगर नही हो रहा है ।
इतवार को अजिताभ को फोन आ गया था कि वह फ़ौरन बंगलौर पहुंचे और साथ फैमिली डाॅक्टर शाह को लेकर। चोट की साधारणता का भ्रम तो अब नही रह गया था, अजिताभ डाॅक्टर को सथ लेकर गए, रमू, मां को बतकर । मुझे कोई भनक तक नही दी गई । मैने समझा इतवार छुट्टी का दिन है, अजिताभ योरोप से लौटकर भाई से नही मिला था, मिलने चला गया ।
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